Azhar Iqbal Poetry Collection | Deccan Litrature Festival Mushaira All Azhar Iqbal Shayri | Latest Collection Of Azhar Iqbal | Tumhe Milne Ko Ab Mann Kar Raha Hai Shayri
गाली को प्रणाम समझना पड़ता हैं
मधुशाला को धाम समझना पड़ता हैं
आधुनिक कहलाने की अंधी ज़िद में
रावण को भी राम समझना पड़ता हैं
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हो गया आपका आगमन नींद में
छू के गुजरी जो मुझको पवन नींद में
मुझको फूलों की वर्षा में नहला गया
मुस्कुराता हुआ एक गगन नींद में
कैसे उद्धार होगा मेरे देश का
लोग करते है चिंतन मनन नींद में
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इतना संगीन पाप कौन करे
मेरे दुख पर विलाप कौन करे
चेतना मर चुकी है लोगों की
पाप पर पश्चाताप कौन करे
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जब भी उसकी गली में भ्रमण होता है
उसके द्वार पर आत्मसमर्पण होता है
किस किस से तुम दोष छुपाओगे अपने
प्रिय अपना मन भी दर्पण होता है
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वो एक पक्षी जो गुंजन कर रहा है
वो मुझमें प्रेम सृजन कर रहा है
बहुत दिन हो गए है तुमसे बिछड़े
तुम्हे मिलने को अब मन कर रहा है
नदी के शांत तट पर बैठ कर मन
तेरी यादें विसर्जन कर रहा है
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हुआ ही क्या जो वो हमें मिला नहीं
बदन ही सिर्फ एक रास्ता नहीं
ये पहला इश्क है तुम्हारा सोच लो
मेरे लिए ये रास्ता नया नहीं
मैं दस्तको पे दस्तके दिए गया
वो एक दर कभी मगर खुला नहीं
~ अज़हर इक़बाल
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