माँ | Mother Poetry | Mother's Day Poetry | Sher On Mom | Ammi Shayri | Maa Shayri

माँ एक ऐसा लफ्ज़ है, जिसके अहमियत के मुतालिक में जितनी भी बात की जाये कम ही है। हम माँ के बिना अपने जिंदगी का तसव्वुर भी नही कर सकते हैं। माँ के अज़मत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इंसान हर चोट में माँ का नाम लेना नही भूलता है।
इस ब्लॉग पोस्ट में मां के मजमूं पर हम चंद अशआर लेकर आए हैं
उम्मीद है आपको पसंद आए ।  


साया फगन थे लाख शजर राहे ज़ीस्त में
मां जैसा मिल सका ना कोई सायेबां मुझे...!! 
~अज्ञात

1. चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है 
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है 
~मुनव्वर राना

2. अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा 
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है 

3. इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है 
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है 

4. किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई 
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई 

5. जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है 
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है 

6. कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में 
ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है  

7. मुनव्वर माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना 
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती 

8. बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर 
माँ सब से कह रही है कि बेटा मज़े में है 

दूर रहती हैं सदा उन से बलाएँ साहिल 
अपने माँ बाप की जो रोज़ दुआ लेते हैं  
~मोहम्मद अली साहिल 

घर की इस बार मुकम्मल मैं तलाशी लूँगा 
ग़म छुपा कर मिरे माँ बाप कहाँ रखते थे 
~अज्ञात 

मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल 
मुद्दतों ब'अद हमें नींद सुहानी आई 
~इक़बाल अशहर 

बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है 
वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है 
~सय्यद ज़मीर जाफ़री 

शहर में आ कर पढ़ने वाले भूल गए 
किस की माँ ने कितना ज़ेवर बेचा था 
~असलम कोलसरी 

जिस ने इक उम्र दी है बच्चों को 
उस के हिस्से में एक दिन आया 
~अज्ञात 

शायद यूँही सिमट सकें घर की ज़रूरतें 
'तनवीर' माँ के हाथ में अपनी कमाई दे 
~तनवीर सिप्रा

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