माना कि एक उम्र से ठहरी हुई है रात | Two Line Deep Poetry

माना कि एक उम्र से ठहरी हुई है रात

इन्सान हैं उमीद-ए-सहर कैसे छोड़ दें...

~ इरफ़ान_सिद्दीक़ी 

Mana ki ek umr se thehri hui hai raat 

Insaan haiñ ummid-e- Sahar kaise chhod de 

~ Irfan Siddiqui



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