Traveling Poetry Collection | Poetry On Travel |Yaatra Par Shayri | Safar Shayri
जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
समुंदर की लहरें वो ताज़ी हवाएँ
रेत की नमी वो पेड़ वो ज़मीन
सब मुझे अपने घर बुला रहे है!
बहुत हो गया काम काज
चलो दोस्तों चलते हैं!
सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता
बहुत कुछ और भी है इस जहाँ में
ये दुनिया महज़ ग़म ही ग़म नहीं है
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