यूँही भटकते फिरेंगे कब तक ख़ुद अपने अंदर तलाश कर लें
जहाँ मुकम्मल सुकूँ मयस्सर हो ऐसी कोई जगह नहीं है ।
~ अज़रा_नक़वी
एक बार उस ने बुलाया था तो मसरूफ़ था मैं
जीते-जी फिर कभी बारी ही नहीं आई मिरी
~फ़रहत एहसास
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
~ जावेद अख़्तर
किसी ने पूछा के फरहत बहुत हसीन हो तुम
तो मुस्कुरा के कहा सारा जमाल दर्द का हैं
~ फरहत अब्बास
क्या क्या हुआ है हम से जुनूँ में न पूछिए,
उलझे कभी ज़मीं से कभी आसमाँ से हम।
~ असरार_उल_हक़_मजाज़
कोई मुझ तक पहुंच नहीं पाता
इतना आसान है पता मेरा
~जौन एलिया
किसी को क्या बताऊँ कौन हूँ मैं
कि अपनी दास्ताँ भूला हुआ हूँ
~ सलीम अहमद
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