शहर क्या देखें हर मंजर में जाले पड़ गए | राहत इंदौरी | Beautiful Ghazal Of Late Rahat Indori Sahab

शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए 
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए 

मैं अँधेरों से बचा लाया था अपने-आप को 
मेरा दुख ये है मिरे पीछे उजाले पड़ गए 

जिन ज़मीनों के क़बाले हैं मिरे पुरखों के नाम 
उन ज़मीनों पर मिरे जीने के लाले पड़ गए 

ताक़ में बैठा हुआ बूढ़ा कबूतर रो दिया 
जिस में डेरा था उसी मस्जिद में ताले पड़ गए 

कोई वारिस हो तो आए और आ कर देख ले 
ज़िल्ल-ए-सुब्हानी की ऊँची छत में जाले पड़ गए

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