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तमाम शहर मुकर्रम, एक मैं मुजरिम
ख़ता क़ुबूल न करता तो और क्या करता


खुद को गलत ठहरा कर
.
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कहानी से निकल गये हम


तेरे बाद मैने मुहब्बत को ,
जब भी लिखा गुनाह लिखा..


मुझे तो इस खबर ने खो दिया हैं
सुना है मैं कहीं पाया गया हु
~ हाफिज जलनधरी


नया-नया हूँ अभी हालात-ए-जुदाई में
पलट-पलट कर तेरी सम्त देखता हूँ मैं


दर्द का लिबास हमने उतार दिया है
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ये कपड़े बहुत पुराने हो चुके थे


मुझे तो होश नहीं आप मशवरा दीजे
कहा से छेड़ू फसाना कहा तमाम करू

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