मैं बिखर गया हु समेट लो मैं बिगड़ गया हूं संवार दो | ऐतबार साजिद | पूरी ग़ज़ल


तुम्हें जब कभी मिलें फ़ुर्सतें, मिरे दिल से बोझ उतार दो 
मैं बहुत दिनों से उदास हूँ, मुझे कोई शाम उधार दो 

मुझे अपने रूप की धूप दो, कि चमक सकें मिरे ख़ाल-ओ-ख़द 
मुझे अपने रंग में रंग दो, मिरे सारे रंग उतार दो 

किसी और को मिरे हाल से, न ग़रज़ है कोई, न वास्ता 
मैं बिखर गया हूँ समेट लो, मैं बिगड़ गया हूँ सँवार दो

मिरी वहशतों को बढ़ा दिया है, जुदाईयोँ के अज़ाब ने
मिरे दिल पे हाथ रक्खो ज़रा, मिरी धडकनों को क़रार दो

वहाँ घर में कौन है मुंतज़िर, कि हो फ़िक्र देर-सवेर की 
बड़ी मुख़्तसर सी ये रात है, इसी चाँदनी में गुज़ार दो 


~ ऐतबार साजिद


Meanings

ख़ाल-ओ-ख़द= चेहरा-मोहरा, features
वहशतों= पागलपन
अज़ाब= कष्ट, मुसीबत, torment
मुंतज़िर= इंतिज़ार करने वाला
मुख़्तसर= थोड़ा, concise

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