दोस्तों एक स्टुडेंट की जिंदगी से आप सब वाक़िफ़ है आप में से कुछ स्टूडेंट रह चुके होंगे और कुछ अभी भी होंगे यही वो दौर होता है जब इंसान की जिंदगी में कई नशेब-ओ-फ़राज़ आते है ख़ासकर जब स्टूडेंट्स अपनी तैयारी कर रहा होता हैं मुस्तकबिल संवारने के जद्दोजहद में होता है तब उसकी क्या कैफ़ियत होती है आपको इन चंद शे'रों में देखने को मिलेगा | ये पोस्ट तमाम स्टूडेंट्स के नाम...
दर ब दर भटकना क्या दफ्तरों के जंगल में
बेलचे उठा लेना, डिग्रियां जला देना
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कहाँ से लाऊँ वो गुज़ारा हुआ वक़्त
जिसमें तुम मयस्सर हुआ करते थे ..!!
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ये माना ज़िन्दगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी
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एक उम्र के बाद जिद भी,
समझौते में बदल जाती है।
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बेरोजगारी खा गई जवान नस्लो को
अब ये लड़के ईद पे खुश नही रहते
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इल्म में भी सुरूर है लेकिन
ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं
~ अल्लामा इक़बाल
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माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
~ अल्लामा इक़बाल
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काश कोई हम से भी पूछे
रात गए तक क्यूँ जागे हो
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जितना जवाल सहना था सह लिया
अब तारीख़ लिखि जाएगी, अपने उरूज की
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हम पलटते नहीं अब बेज़ान किताबों के वरक़,
हम वो पढ़ते हैं, जो चहरों पे लिखा होता है..!
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थोड़ा जल्दी कामयाब
कर दे खुदा,
घर के बुरे हालात अब देखे नहीं जाते
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अग़र मग़र और काश में हूँ..
मैं खुद अपनी तलाश में हूँ..!!
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थकन से चूर हूँ लेकिन रवाँ-दवाँ हूँ मैं
नई सहर के चराग़ों का कारवाँ हूँ मैं
~अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
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सफ़र में हूँ
खोया नहीं हूँ मैं..
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इक्कीस बाईस सालों ने थका दिया मुझे,,
ये लोग साठ सत्तर साल कैसे गुजार लेते है।
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उनकी जोड़ी बहुत बेकार लग रही थी
उसे रुख़सत करने वाले मुझे ये दिलासा दे रहे थे
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जवानी बीत रही है एक कमरे में साहेब,
ना मोहब्बत मिली, ना नौकरी अब तक
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