यौम -ए- उर्दू | Happy Urdu Day | 9 November Urdu Day


चाँद-चेहरे मुझे अच्छे तो बहुत लगते हैं 

इश्क़ मैं उस से करूँगा जिसे उर्दू आए 

~ अब्बास ताबिश 


सगी बहनों का जो रिश्ता रिश्ता है उर्दू और हिन्दी में 

कहीं दुनिया की दो ज़िंदा ज़बानों में नहीं मिलता 

~ मुनव्वर राना 


वो इत्र-दान सा लहजा मिरे बुज़ुर्गों का 

रची-बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुश्बू 

~ बशीर बद्र 


वो करे बात तो हर लफ़्ज़ से ख़ुश्बू आए 

ऐसी बोली वही बोले जिसे उर्दू आए 

~ अहमद वसी 


हिन्दी में और उर्दू में फ़र्क़ है तो इतना 

वो ख़्वाब देखते हैं हम देखते हैं सपना  

अज्ञात 


मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी 

तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई 

~ मुनव्वर राना 


उर्दू जिसे कहते हैं तहज़ीब का चश्मा है 

वो शख़्स मोहज़्ज़ब है जिस को ये ज़बाँ आई 

~ रविश सिद्दीक़ी 


जो ये हिन्दोस्ताँ नहीं होता 

तो ये उर्दू ज़बाँ नहीं होती 

~ अब्दुल सलाम बंगलौरी 


शुस्ता ज़बाँ शगुफ़्ता बयाँ होंठ गुल-फ़िशाँ 

सारी हैं तुझ में ख़ूबियाँ उर्दू ज़बान की 

~ फ़रहत एहसास


हाँ मुझे उर्दू है पंजाबी से भी बढ़ कर अज़ीज़ 

शुक्र है 'अनवर' मिरी सोचें इलाक़ाई नहीं 

~ अनवर मसूद 

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