Zafar Iqbal Best Poetry Collection | Couplets Of Zafar Iqbal in Hindi


थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते करते

कुछ और थक गया हूँ आराम करते करते 

यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला

किसी को हम न मिले और हम को तू न मिला 

झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर 'ज़फ़र'

आदमी को साहब-ए-किरदार होना चाहिए 

मुस्कुराते हुए मिलता हूँ किसी से जो 'ज़फ़र'

साफ़ पहचान लिया जाता हूँ रोया हुआ मैं 

उस को भी याद करने की फ़ुर्सत न थी मुझे

मसरूफ़ था मैं कुछ भी न करने के बावजूद 

मुझ में हैं गहरी उदासी के जरासीम इस क़दर

मैं तुझे भी इस मरज़ में मुब्तला कर जाऊँगा 

ये हम जो पेट से ही सोचते हैं शाम ओ सहर

कभी तो जाएँगे इस दाल-भात से आगे 

ख़ैरात का मुझे कोई लालच नहीं 'ज़फ़र'

मैं इस गली में सिर्फ़ सदा करने आया हूँ

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