बदनाम अगर है बड़े हम,
क्या करे हैं थोड़े पिछड़े हम,
है कड़वा ये सच मगर, पर ये सच है
लूटे गए हैं थोड़ा-थोड़ा हर बरस हम
बदनाम अगर है बड़े हम,
क्या करे हैं थोड़े पिछड़े हम,
है कड़वा ये सच मगर, पर ये सच है
लूटे गए हैं थोड़ा-थोड़ा हर बरस हम
Copyright © 2019-2022 Qafas Poetry All Right Reserved
0 Comments
Please do not comment any spam links