लूटे गए हैं थोड़ा-थोड़ा हर बरस हम | Hindi Four Line Poetry

बदनाम अगर है बड़े हम,

क्या करे हैं थोड़े पिछड़े हम,

है कड़वा ये सच मगर, पर ये सच है 

लूटे गए हैं थोड़ा-थोड़ा हर बरस हम

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