तुम्हें याद हो कि ना याद हो | मोमीन खान मोमीन | दिलचस्प ग़ज़ल




वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि याद हो    

वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि याद हो

वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेशतर वो करम कि था मेरे हाल पर
मुझे सब है याद ज़रा ज़रा तुम्हें याद हो कि न याद हो

वो नए गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो

कभी बैठे सब में जो रूबरू तो इशारतों ही से गुफ़्तुगू
वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो कि न याद हो

कोई बात ऐसी अगर हुई कि तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो कि न याद हो

कभी हम में तुम में भी चाह थी कभी हम से तुम से भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आश्ना तुम्हें याद हो कि न याद हो

सुनो ज़िक्र है कई साल का कि किया इक आप ने वादा था
सो निबाहने का तो ज़िक्र क्या तुम्हें याद हो कि न याद हो

वो बिगड़ना वस्ल की रात का वो न मानना किसी बात का
वो नहीं नहीं की हर आन अदा तुम्हें याद हो कि न याद हो

जिसे आप गिनते थे आश्ना जिसे आप कहते थे बावफ़ा
मैं वही हूँ 'मोमिन'-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो कि न याद हो

                                                    मोमीन खान मोमीन

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Meaning 
बेशतर - Mostly
हिकायते - Story
बरमला - Openly
आश्ना - Companion
बावफा - Faithful

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