Meraj Faizabadi Rare Collection | Best Collection | Some Couplets Of Meraj Faizabadi

मेराज फैजाबादी साहब की चुनिंदा नज़्म और चंद अशआर


मोहब्बतों के हुनर को तरस गए हमलोग
रहे भी घर में तो घर को तरस गए हमलोग

हमारे साथ सफर कर रहा था एक हुजूम
मगर शरीक-ए-सफर को तरस गए हमलोग

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मैं जीने का हुनर खोने लगा हूं
जमीनों में हवस बोने लगा हूं

इन अखबारों से डर लगने लगा है
सो अब मैं देर तक सोने लगा हूं

मेरी खुद्दारिया थकने लगी हैं
मैं तोहफे पाके खुश होने लगा हूं

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झील आंखों को नम होठों को कमल कहते हैं
हम तो जख्मों की नुमाइश को ग़ज़ल कहते हैं

मांगते हैं भीख अब अपने मुहल्लों में फकीर
भूख भी मोहतात हो जाती है खतरा देखकर

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बेख़्वाब सअतों का परस्तार कौन है
इतनी उदास रात में बेदार कौन है

किस को ये फ़िक़्र के क़बीले को क्या हुआ
सब इस पे लड़ रहे हैं कि सरदार कौन है

दीवार पर सजा तो दिये बाग़ियों के सर
अब ये भी देख लो कि पस-ए-दीवार कौन है

सब कश्तियाँ जला के चले साहिलों से हम
अब तुम से क्या बतायेँ के उस पार कौन है

ये फ़ैसला तो शायद वक़्त भी न कर सके
सच कौन बोलता है अदाकार कौन है

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