हुजूर के दर्शन कहीं नहीं हुए.!!
दीदार के काबिल कहां मेरी नजर हैं
ये तो उनकी इनायत हैं कि उनका रुख इधर हैं
उसकी गली से उठ के मैं आन पड़ा था अपने घर,
एक गली की बात थी और गली गली गयी...
- जौन एलिया
लगा के आग शहर को, ये बादशाह ने कहा
उठा है आज दिल में तमाशे का शौक़ बहुत
झुका के सर, सभी शाह-परस्त बोल उठे
हुज़ूर का शौक़ सलामत रहे, शहर और बहुत”
-अज्ञात
तुम सिर्फ़ लुत्फ़ उठाओ इन किस्सों के
मत पूछो... दर्द किसका है, किसके लिए है !!
तेरा वजूद.... रिवायतों के एतिकाफ़ में,
मेरा वजूद.... तेरे एन, शीन क़ाफ़ में!!
शनिवार की अटकी हुई ज़िंदगी में,
इतवार का इंतजार हो तुम ।।।
दिल की धड़कन बढ़ी है सुनने वालों की
किस ने ख़बर उड़ा दी हम कुछ बोलेंगे
- सदार आसिफ़
पागल कैसे हो जाते हैं
देखो ऐसे हो जाते हैं
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