Collection Of Jawad Sheikh | Best Ghazal By Jawad Shaikh | Khubsurat Collection
एक तस्वीर कि अव्वल नहीं देखी जाती
देख भी लूँ तो मुसलसल नहीं देखी जाती
देखी जाती है मोहब्बत में हर इक जुम्बिश-ए-दिल
सिर्फ़ साँसों की रिहर्सल नहीं देखी जाती
इक तो वैसे बड़ी तारीक है ख़्वाहिश-नगरी
फिर तवील इतनी कि पैदल नहीं देखी जाती
ऐसा कुछ है भी नहीं जिस से तुझे बहलाऊँ
ये उदासी भी मुसलसल नहीं देखी जाती
सामने इक वही सूरत नहीं रहती अक्सर
जो कभी आँख से ओझल नहीं देखी जाती
मैं ने इक उम्र से बटवे में सँभाली हुई है
वही तस्वीर जो इक पल नहीं देखी जाती
अब मिरा ध्यान कहीं और चला जाता है
अब कोई फ़िल्म मुकम्मल नहीं देखी जाती
इक मक़ाम ऐसा भी आता है सफ़र में 'जव्वाद'
सामने हो भी तो दलदल नहीं देखी जाती
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अ'र्ज़-ए-अलम ब-तर्ज़-ए-तमाशा भी चाहिए
दुनिया को हाल ही नहीं हुलिया भी चाहिए
ऐ दिल किसी भी तरह मुझे दस्तियाब कर
जितना भी चाहिए उसे जैसा भी चाहिए
दुख ऐसा चाहिए कि मुसलसल रहे मुझे
और उस के साथ साथ अनोखा भी चाहिए
इक ज़ख़्म मुझ को चाहिए मेरे मिज़ाज का
या'नी हरा भी चाहिए गहरा भी चाहिए
इक ऐसा वस्फ़ चाहिए जो सिर्फ़ मुझ में हो
और उस में फिर मुझे यद-ए-तूला भी चाहिए
रब्ब-ए-सुख़न मुझे तिरी यकताई की क़सम
अब कोई सुन के बोलने वाला भी चाहिए
क्या है जो हो गया हूँ मैं थोड़ा बहुत ख़राब
थोड़ा बहुत ख़राब तो होना भी चाहिए
हँसने को सिर्फ़ होंट ही काफ़ी नहीं रहे
'जव्वाद-शैख़' अब तो कलेजा भी चाहिए
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