गाँव शायरी | Poetry on Village | Sher For Village | Gao Ke Upar Shayri

Poetry For Village | Gao Ke Upar Shayri | Sher On Village | Best Couplets On Village


हर वो शख्स जिसका भी गांव से वाबस्ता रहा हो वो गांव के अपनापन, मासूमियत और सलाहियत को कैसे फरामोश कर सकता हैं ।
ये इंतेखाब पढ़े और अपने गांव के यादों को तरो ताज़ा करे


हम भी गाँव में शाम को बैठा करते थे,
हमको भी हालात ने बाहर भेजा है.
- ज़ाहिद बशीर

Hum bhi gaoñ meiñ sham ko baitha karte the
Humko bhi halat ne bahar bheja hai
~ Zahid Bashir

बेबाक थे बहुत अपने गांव की गलियों में...
शहर के शोर में आकर मेरी आवाज दब गई
~ न मालूम

Bebak the bahut apne gaoñ ki galiyoñ me
Shahar ke shor me akar meri awaz dab gayi
- Na Malum

बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता 
हमारे गाँव में बरसात क्यूँ नहीं करता 
~ तहज़ीब हाफ़ी

Bata ye abr musavat kyu nhi karta
Hamare gaoñ me barsat kyu nhi karta
~ Tahzeeb Haafi

रात चौपाल और अलाव मियाँ
अब कहाँ गाँव का सुभाव मियाँ
- यूसुफ़ तक़ी

Raat chaupal aur alav miyañ
Ab kahañ gaoñ ka subhao miyañ
~ Yusuf Taqi

क्या शहर क्या गांव सब बदलने लगे.. 
"सहाब" अब एक घर में कई चूल्हे जलने लगे..
~ न मालूम

Kya shahar kya gaoñ sab badalne lage
"Sahab" ab ek ghar me kayi chulhe jalne lage
- Na Malum

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