वो इसी शहर की गलियों में कहीं रहता है | अहमद मुश्ताक़ | खूबसूरत ग़ज़ल



मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है 
वो इसी शहर की गलियों में कहीं रहता है 

जिस की साँसों से महकते थे दर-ओ-बाम तिरे 
ऐ मकाँ बोल कहाँ अब वो मकीं रहता है 

इक ज़माना था कि सब एक जगह रहते थे 
और अब कोई कहीं कोई कहीं रहता है 

रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गए 
इश्क़ में वक़्त का एहसास नहीं रहता है 

दिल फ़सुर्दा तो हुआ देख के उस को लेकिन 
उम्र भर कौन जवाँ कौन हसीं रहता है
 

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